Demand paging in hindi:- (डिमांड पेजिंग क्या है?)
Demand paging एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक पेज को सेकेंडरी मैमोरी (हार्ड डिस्क) से मैन मैमोरी (RAM) में तब तक नहीं लाया जाता है जब तक कि उनकी जरुरत नहीं पड़ती है.
demand paging जो है वह paging तथा swapping का एक combination होता है.
demand paging जो है वह normal paging की तरह ही होता है परन्तु इनमें मुख्य अंतर यह है कि demand paging में swapping का प्रयोग किया जाता है. अर्थात सभी pages हार्ड डिस्क में रहते है और उनकी जब जरुरत पड़ती है तो उन्हें RAM में swap in तथा swap out किया जाता है.
ऑपरेटिंग सिस्टम में जब हम कोई process को execute करते है तो वह process सबसे पहले हार्ड डिस्क में स्टोर रहती है. यह प्रोसेस pages के रूप में होती है.
जब भी किसी page की जरुरत पड़ती है तो उसे RAM में swap in कर दिया जाता है. इस कारण इसे lazy swapping भी कहते है. और जब RAM में किसी page की जरूरत नहीं होती है तो उसे swap out करके वापस हार्ड डिस्क में भेज दिया जाता है.
हार्ड डिस्क से या RAM से pages को swap करने के लिए हमें page table का प्रयोग करना पड़ता है. page table का प्रयोग page number तथा offset number को स्वैप क्या है स्टोर करने के लिए किया जाता है. offset number जो है वह process के address को contain किये हुए रहता है.
page table में दो entries भी होती है- valid और invalid. इसमें अगर जिस पेज की जरुरत पड़ती है वह पेज हार्ड डिस्क में है तो उसके लिए वह valid एंट्री देगा. तथा अगर नहीं है तो invalid एंट्री देगा.
advantage of demand paging (डिमांड पेजिंग के लाभ):-
इसके लाभ निम्नलिखित है:-
1:- इससे मैमोरी की जरुरत कम पड़ती है.
2:- हम इसमें मैमोरी का प्रयोग अच्छे से कर सकते है.
3:– इससे swap time कम हो जाता है क्योंकि हम पूरी प्रोसेस को swap नहीं करते बल्कि सिर्फ pages को ही swap करते है.
4:- इससे multi programming का स्तर बढ़ता है.
disadvantage of demand paging (डिमांड पेजिंग की हानि):-
इसमें page fault होने की संभावना होती है. page fault वह स्थिति होती है जब किसी पेज की जरुरत होती है और वह पेज RAM में उपस्थित नहीं होता है.
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अतीत की वो छोटी घटना जिससे पैदा हुआ था Cotton Swab को बनाने का ख़्याल. जानिए इसका दिलचस्प इतिहास
History of Cotton Swab : इतिहास गवाह है कि बहुत-सी ज़रूरत की चीज़ों के आविष्कार के वक़्त ये नहीं सोचा गया था कि ये आगे चलकर बड़े-बड़े कामों में अहम भूमिका निभाएंगी. Cotton Swab के साथ भी कुछ ऐसा ही है, जो आज कोविड संक्रमण की जांच में सबसे अहम भूमिका निभा रहा है. वैसे क्या आप जानते हैं ये हमारे बीच कब से अस्तित्व में है? अगर नहीं, तो आइये इस लेख में आपको बताते हैं कि कब और कैसे Cotton Swab का आविष्कार हुआ था. साथ में और भी कई संबंधित बातें इस लेख में आपको बताई जाएंगी.
ज़िंदगी का एक हिस्सा बन चुका है
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Cotton Swab कोई नई चीज़ नहीं है कि बल्कि ये आधुनिक ज़िंदगी का एक हिस्सा बन चुका है. घर से लेकर अस्पतालों व मेडिकल लैब तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है. घर में इसका इस्तेमाल अमूमन कान साफ़ करने व महिलाएं मेकअप के वक़्त करती हैं. वैसे बता दें कि कॉटन स्वाब से कान साफ़ नहीं करना चाहिए.
ख़ूनी को पकड़ने में भी अहम भूमिका
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मामूली-सा दिखने वाला कॉटन स्वाब ख़ूनी को पकड़ने में भी फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञ की मदद करता है. दरअसल, इसके ज़रिए संदिग्ध व्यक्ति के DNA के सैंपल लिए जाते हैं ताकि क्राइम सीन पर मिले सैंपल से उसे मैच कराया जा सके. इसके बाद इसकी रिपोर्ट बनाई जाती है जो आरोपी को पकड़ने और उसे सज़ा देने में मदद करती है. बता दें कि फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञ Moistened Cotton Swabs का इस्तेमाल DNA सैंपल के लिए करते हैं.
लकड़ी से प्लास्टिक तक का सफ़र
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पहले जो कॉटन स्वाब इस्तेमाल में लिए जाते थे वो लकड़ी के होते थे यानी सूईनुमा तीली पर रुई लगी होती थी. लेकिन, आज लड़की के साथ-साथ प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इन्हें बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे आजकल सस्ते कॉटन स्वाब भी उपलब्ध हैं जिसकी गुणवत्ता सही नहीं होती और इन्हें इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए.
क्या है कॉटन स्वॉब का इतिहास?
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कॉटन स्वाब के आविष्कारक का नाम Leo Gerstenzang बताया जाता है. Leo Gerstenzang पोलैंड के रहने वाले थे जिन्होंने 1920 के दशक में पहला कॉटन स्वाब बनाया था. इसके आविष्कार का ख़्याल एक छोटी घटना से जुड़ा है. दरअसल, माना जाता है कि एक बार लियो ने अपनी पत्नी को तीली पर रुई लपेटकर बच्चे का कान साफ़ करते देखा था. ये दृश्य देखकर ही उन्हें कॉटन स्वाब बनाने का ख़्याल आया था.
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इसके बाद इन्होंने “Baby Gays” नाम से कॉटन स्वाब को एक उत्पाद के रूप में बनाया. इन्होंने अपनी एक कंपनी भी बना ली थी जिसका नाम था Leo Gerstenzang Infant Novelty Company. 1926 तक इसे “Baby Gays” कहा गया और बाद में इसका नाम Q-Tips कर दिया गया था. वहीं, 1948 तक इसकी मांग काफी बढ़ गई थी, जिससे बाद इसका बड़े स्तर पर निर्माण किया गया था. इसके बाद 1950 के दशक में ये मेकअप की दुनिया में प्रवेश कर गया था. इसके बाद इसका इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में किया जाने लगा और वर्तमान में ये एक महत्वपूर्ण टूल के रूप में जाना जाता है.
आम कॉटन स्वाब से कितना अलग है कोविड स्वैप क्या है की जांच वाला स्वाब
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ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न कामों के लिए कॉटन स्वाब को अलग-अलग तरीक़े से बनाया गया है. वहीं, कोविड की जांच में इस्तेमाल होने वाला और कान साफ़ करने व मेकअप में इस्तेमाल होने वाला स्वाव काफी अलग होता है. दरअसल, कोविड संक्रमण की जांच के सैंपल के लिए Nasopharyngeal Swab का इस्तेमाल किया जाता है. इस जांच में जो स्वाब इस्तेमाल होते हैं वो लंबे होते हैं ताकि नाक के ज़रिए नाक और गले के पीछे से सैंपल लिया जा सके.
इस जांच के लिए CDC और WHO ने Synthetic Fiber Swabs के लिए कहा है. वहीं, कोविड के बढ़ते मामले और जांच की वजह से Synthetic Fiber Swabs की कमी को पूरा करने के लिए Cotton-tipped plastic swabs भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिन्हें लगभग सिथेंटिक फ़ाइबर स्वॉब के बराबर माना गया है.
इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए बैटरी स्वैपिंग नीति-केंद्रीय बजट 2022-23
इस आर्टिकल में इलेक्ट्रिक वाहनों बढ़ावा देने के लिए वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2022-23 में क्या कहा ?, बैटरी स्वैपिंग नीति के बारे में वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्या कहा ?, तथा बैटरी स्वैपिंग नीति क्या है ? इसके बारे में जानेंगे।
पेट्रोल-डीजल के वाहनों से वर्तमान समय में प्रदुषण की मात्रा बहुत अधिक बढ़ चुका है। इसलिए पर्यावरण में से प्रदुषण की मात्रा को कम करने के लिए बहुत से लोगो ने इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग शुरू कर दिया है। इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रचलन बढे इसके लिए सरकार के द्वारा बहुत सी सब्सिडी तथा टैक्स में छूट दिया जा रहा है। लोगो में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति जागृति लाने के लिए सरकार के द्वारा बहुत से सेमिनार जैसे कार्यक्रम शुरू किये जा रहे है
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बैटरी स्वैपिंग नीति (Battery Swapping Policy)
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2022 के दिन वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए केंद्रीय वित्तीय बजट की घोषणा की।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए 2022-23 के केंद्रीय बजट में बैटरी स्वैपिंग नीति की घोषणा की।
बैटरी स्वैप क्या है स्वैपिंग नीति यह ऐसी नीति है जिसमे समाप्त हो चुकी बैटरी को पूरी तरह से चार्ज की गई बैटरी से बदल दिया जाता है। थोड़े ही समय में इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने का सबसे आसान तरीका है। बै
टरी स्वैपिंग नीति का फायदा यह होगा को ईवी में बैटरी चार्जिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। और बैटरी की चार्जिंग जैसे ही खत्म होगी उसे फिर से फुल चार्ज करके लगाया जा सकता है।
यह नीति लाने से लोगो में जो इलेक्ट्रिक वाहन खरीदते समय चार्जिंग से संबंधित जो भी सवाल थे वो सभी सवाल दूर हो जायेंगे।
निर्मला सीतारमण ने भाषण के दौरान यह भी कहा की, चार्जिंग स्टेशनो की स्थापना के लिए शहरी क्षेत्रो में जगह की कमी को ध्यान में रखते हुए बैटरी स्वैपिंग नीति को लाया जायेगा और इंटरऑपरेबिलिटी मानकों को औपचारिक रूप दिया जायेगा।
बैटरी स्वैपिंग नीति आने से सरकार बैटरी बनाने के लिए निजी क्षेत्र तथा ऊर्जा क्षेत्र में नई व्यवसाय मॉडल बनाने के लिए भी बढ़ावा देगी। वित्त मंत्री ने यह भी कहा की सरकार ईवी के विकास के लिए स्पेशल मोबिलिटी जोन भी बनाने की योजना कर रही है।
संसद में बजट सत्र के दौरान ,सीतारमण जी ने संकेत दिया की जल्द ही देश में कुछ ऐसे क्षेत्र होंगे जो ICE वाहन वाले लोगो के लिए प्रतिबंधित होंगे। उनका यह बयान इस बात को मजबूत संकेत देता है की सरकार वित्तीय वर्ष 2022-23 में ईवी उद्योग को जबरदस्त बढ़ावा देने के लिए योजना बना रहा है।
देश में बैटरी स्वैपिंग को सफलतापूर्वक अपनाने स्वैप क्या है के लिए भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज और ब्रिटैन की बीपी पीएलसी ने साझेदारी की है। वही Bounce Infinity कंपनी ने महीनो पहले ही अपनी Bounce swappable battery technology वाली पहेली इलेक्ट्रिक स्कूटर लांच कर दी है।
बैटरी स्वैपिंग नीति Quick Details Story
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बैटरी स्वैपिंग नीति क्या है?
बैटरी स्वैपिंग निति यह, इलेक्ट्रिक वेहिकल्स की बैटरी ख़त्म हो जाने पर बैटरी को चार्ज करने के बजाय बैटरी स्वैपिंग स्टेशन पर जाकर ख़त्म बैटरी को निकाल के स्वैप स्टेशन में से फुल चार्ज बैटरी को लेकर व्हीकल में लगा लेना। जिससे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स कुछ ही समय में फुल चार्ज हो जायेंगे।
बैटरी स्वैपिंग नीति के फायदे?
बैटरी स्वैपिंग नीति के कारन इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को चार्ज करने में लग रहा समय स्वैप क्या है की बचत होगी (कुछ ही मिनिटों में गाड़ी फुल चार्ज हो जाएगी) तथा इंफ्रास्ट्रक्चर खर्चा भी बचेगा।
ICICI बैंक के ग्राहक सावधान! न करें ये गलती, एक झटके में खाली हो सकता है अकाउंट
ICICI Bank Alert- सिम के पीछे लिखा हुआ 20 अंकों वाला सिम नंबर किसी के भी साथ शेयर न करें. ध्यान रखें कंपनी कभी सिम नंबर नहीं पूछेगी.
- शुभम् शुक्ला
- Publish Date - April 9, 2021 / 08:39 PM IST
ICICI Bank Alert: आईसीआईसीआई बैंक ने अपने करोड़ों ग्राहकों को सिम स्वैप फ्रॉड (Sim Swap Fraud) को लेकर अलर्ट किया है. अगर अलर्ट पर ध्यान नहीं दिया तो बैंक अकाउंट डिटेल्स हैकर्स के हाथ लग सकती हैं. ICICI बैंक ने कहा है कि कभी भी अपने कॉन्टैक्ट डिटेल्स को सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा न करें. सिम स्वैप के जरिए चंद मिनटों में खाता खाली किया जा सकता है. पिछले कुछ समय से हैकर्स अकाउंट को हैक नहीं कर रहे हैं. बल्कि लोगों का अकाउंट हैक करने के वह एक नई तकनीक का सहारा ले रहे हैं. बैंक के मुताबिक, SIM स्वैप फ्रॉड से लोगों के अकाउंट खाली किए जा रहे हैं. ICICI बैंक ने अपने ग्राहकों को इससे बचने के टिप्स भी जारी किए हैं.
ICICI के ग्राहक मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं. अपने मोबाइल फोन में वित्तीय लेनदेन के लिए आवश्यक खाता-संबंधी अलर्ट, वन टाइम पासवर्ड (OTP), यूनिक रजिस्ट्रेशन नंबर (URN), 3D सिक्योर कोड हासिल कर सकते हैं. इसके जरिए फाइनेंशियल पूछताछ भी करते हैं. बैंक ने कहा अगर आपका नंबर अचानक काम करना बंद कर दे तो तुरंत अपने ऑपरेटर से इसकी पूछताछ करें. सिम के पीछे लिखा हुआ 20 अंकों वाला सिम नंबर किसी के भी साथ शेयर न करें. ध्यान रखें कंपनी कभी सिम नंबर नहीं पूछेगी. इस मोबाइल नंबर से आपके बैंक खाते लिंक हैं, उसे कभी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर डिस्प्ले न करें.
क्या है SIM स्वैप?
सिम कार्ड में यूजर का डाटा स्टोर्ड होता है. सिम यूजर की ऑथेंटिकेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि आप बिना सिम के किसी दूसरे नेटवर्क से नहीं जुड़ते. सिम स्वैप फ्रॉड में सिम का इस्तेमाल होता है. सीधे तौर पर कहा जाए तो, आपके पास जो भी सिम (मोबाइल नंबर) है, वह अचानक बंद हो जाता है. असल में होता यह है कि आपके नाम से जो भी सिम है, उस सिम को हैकर स्वैप कर लेते हैं. फिर स्वैप किए गए सिम को क्लोन करके उसका नकली सिम (डुप्लीकेट) बना लिया जाता है. अब वही नंबर स्वैप क्या है के सिम को हैकर अपने नाम से शुरू कर लेता है. फिर हैकर आपके सभी बैंकों के OTP को जेनरेट करके उसका गलत फायदा उठता है. OTP की मदद से अकाउंट से चंद मिनटों में पैसे निकाले जाते हैं
कैसे होती है धोखाधड़ी?
सिम स्वैप फ्रॉड का सबसे आसान तरीका है. यह एक कॉल के जरिए शुरु होता है. आपके नंबर पर एक कॉल आएगी, जिसमें टेलीकॉम कंपनी का एग्जीक्यूटिव बनकर हैकर आपको कॉल करेगा. इस कॉल पर आपको नेटवर्क बेहतर बनाने के लिए फोन नंबर ऑथेंटिकेट करने के लिए कहा जाएगा. कॉलर आपसे नेटवर्क सुधारने के लिए आपसे सिम के पीछे प्रिंट 20 डिजिट वाला नंबर पूछ सकता है. हैंकर्स को जैसे ही आप 20 डिजिट वाला नंबर बताएंगे तो आपसे 1 दबाने को कहेगा. यह सिम स्वैप करने की सहमति के लिए होता है. टेलीकॉम कंपनी आपकी इस रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लेगी. इस तरह आपका सिम कार्ड ब्लॉक हो जाएगा और दूसरा यानी स्वैप किया गया सिम एक्टिवेट हो जाएगा.
OTP जेनरेट के लिए इस्तेमाल
सिम स्वैप करने वाले हैकर के पास आपके बैंक अकाउंट की डिटेल्स होती हैं या फिर आपका डेबिट कार्ड का नंबर होता है. बस जरूरत होती है तो ओटीपी की, सिम स्वैपिंग की मदद से उसे ओटीपी भी मिल जाएगा.
ICICI बैंक ने दिए टिप्स
अगर आपके फोन में लंबे समय से नेटवर्क नहीं आ रहा है और आपको कोई कॉल रिसीव नहीं हो रहा है तो तुरंत अपने मोबाइल ऑपरेटर से संपर्क करें.
अपने मोबाइल नंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर न करें.
अगर आपको SIM स्वैप का अंदेशा होता है तो तुरंत अपने मोबाइल ऑपरेटर से कॉन्टैक्ट करें.
अगर आपको बार-बार अननोन कॉल्स आ रही हैं तो अपने फोन को स्विच ऑफ न करें. ऐसा हो सकता है कि धोखाधड़ी करने वाले चाहते हों कि आप फोन स्विच ऑफ करें और वे अपना काम कर लें.
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