“अब आप यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार सिक्कों को छोटा क्यों कर रही है.”
स्थिर सिक्कों के स्थिर सिक्कों के प्रकार प्रकार
एक थैले में तीन प्रकार के सिक् .
एक थैले में तीन प्रकार के सिक्के- एक रूपये, 50 पैसे और 25 पैसे के कुल 175 सिक्के है। यदि प्रत्येक प्रकार के सिक्को की कुल कीमत बराबर है, तब थैले में कुल धन है-
Updated On: 27-06-2022
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80 रूपये 180 रूपये 75 रूपये 175 रूपये
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नमस्कार लिखित प्रश्न क्या है एक थैले में तीन प्रकार के सिक्के हैं एक रुपए का 50 पैसे और 25 पैसे के कुल कितने हैं देखिए यहां पर एक चक्कर क्यों यदि प्रत्येक प्रकार के सिक्कों की कुल कीमत बराबर है तब खेल में कुल धन कितना होगा लेके पहला जो विकल्प दिया कितना ₹10 दिया दूसरा जो दिया कितना दिया देखो 180 दिया है तीसरा जो दिया वह ₹75 दिया और चौथा जो भी कर दिया वह 175 तो दिखे पहले हम क्या करेंगे जो चीजें हमें ज्ञात करनी है वह हमें मां हम क्या करेंगे हम मान लेंगे लेकिन यहां पर हमें पता नहीं है कि ₹1 के कितने सिक्के हमें यह भी पता नहीं कि 50 वर्षीय कितने से क्या और यह भी पता नहीं कि पच्चीस पैसे के कितने सिक्के हैं तो हम क्या करेंगे वह मान लो ठीक है तुम मान लो मान लो एक रुपए स्थिर सिक्कों के प्रकार के सिक्के जो हैं
ऐतिहासिक स्रोत के रूप में सिक्के : Numismatics
चूँकि प्राचीन समय में आधुनिक बैंकिंग प्रणाली की तरह कुछ भी नहीं था, लोग मिट्टी के बर्तन और पीतल के बर्तनों में धन इकट्ठा किया करते थे और उनको बहुमूल्य चीजों के रूप में रखते थे ताकि वे जरूरत के समय उसका इस्तेमाल कर सकें।
भारत के विभिन्न हिस्सों में सिक्कों के ऐसे कई ढेर पाए गए हैं, जिनमें केवल भारतीय ही नहीं, रोमन साम्राज्य जैसे विदेशों में ढाले गए सिक्के भी थे। वे मुख्यतः कोलकाता, पटना, लखनऊ, स्थिर सिक्कों के प्रकार दिल्ली, जयपुर, मुम्बई और चेन्नई के संग्रहालयों में संरक्षित हैं। कई भारतीय सिक्के नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संग्रहालयों में है।
विदित है कि लम्बे समय तक भारत पर ब्रिटेन ने शासन किया फलस्वरूप वे कई भारतीय सिक्कों को भारत से बाहर ब्रिटेन के निजी और सार्वजानिक संग्रहों और संग्रहालयों में ले जाने में सफल रहे। प्रमुख वंशों के सिक्कों की स्थिर सिक्कों के प्रकार सूची तैयार की गई है और उन्हें प्रकाशित भी किया गया है।
प्राचीन भारतीय सिक्के : Ancient Indian coins
भारतीय इतिहास का पहला सिक्का आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्का माना जाता है। इन्हें पंचमार्क (Punch marked) कहने का तात्पर्य यह था कि ये सिक्के पंच (ठप्पा) मार कर marked कर के बनाये जाते थे। ये चांदी या तांबे के बने होते थे। हालांकि कुछ सोने के पंचमार्क सिक्के भी प्रकाश में आये हैं किन्तु उनकी प्रमाणिकता संदिग्ध है।
प्राचीन सिक्के भिन्न भिन्न कालखण्ड में अलग अलग धातुओं के रहे हैं। हिन्द यवन शासकों के सिक्के अधिक मात्रा में चाँदी व तांबे के प्राप्त हुए हैं किंतु कुछ सोने के सिक्के भी मिले हैं। स्वर्ण सिक्कों को सर्वप्रथम प्रचलित करने का श्रेय ही हिन्द-यवन शासकों को जाता है।
कुषाणों के सिक्के अधिकांशतः सोने व तांबे के सिक्के भी चलाए गये थे। कुषाण काल के स्वर्ण सिक्के सबसे शुध्द थे।
वहीं अगर बात करें गुप्त शासकों की तो इन्होंने सर्वाधिक स्वर्ण सिक्के चलाये थे किन्तु पतन के काल में इनके चांदी के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
प्राचीन भारतीय सिक्कों की विषयवस्तु :
➠ प्राचीनतम सिक्कों में कुछ प्रतीक होते थे लेकिन बाद के सिक्के राजाओं और देवताओं के आकार-प्रकार के साथ-साथ उनके नाम और तारीखों का भी उल्लेख करते हैं। जहाँ वे पाए जाते हैं, उससे उनके संचरण के क्षेत्र का संकेत मिलता है।
इस सबने हमें कई सत्तारूढ़ राजवंशों के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में सक्षम बना दिया है, खासकर स्थिर सिक्कों के प्रकार इण्डो-यूनानियों के जो उत्तर अफगानिस्तान से भारत आए थे और यहाँ दूसरी और ई.पू. पहली शताब्दी तक शासन किया, हम उनके बारे में भी इसी आधार पर जानकारी हासिल कर पाए हैं।
➠ सिक्कों का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों मसलन दान, भुगतान और विनिमय के माध्यम के रूप में किया जाता था। ये उस वक्त के आर्थिक इतिहास के स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं। शासकों की अनुमति से व्यापारियों एवं सुनारों के समूह द्वारा कुछ सिक्के जारी किए गए थे।
भारत में सिक्कों का आकार क्यों घटता जा रहा है?
देश में करेंसी नोटों को छापने के कार्य रिज़र्व बैंक के द्वारा किया जाता है जबकि सिक्कों को बनाने का काम वित्त मंत्रालय के द्वारा किया जाता है. भारत सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे क्योंकि यदि ऐसा नही होगा तो लोग सिक्के को पिघलाकर उसकी धातु को बाजार में बेच देंगे जिसके कारण भारत के बाजर से सिक्के गायब हो जायेंगे. सिक्कों की मेटलिक वैल्यू घटाने के लिए सरकार उनका आकार छोटा कर रही है.
ज्ञातव्य है कि वित्त मंत्रलाय देश के सिक्के बनाने काम रिज़र्व बैंक से नहीं करवाता है लेकिन देश में नोटों और सिक्कों को पूरी आर्थव्यवस्था में फ़ैलाने का काम रिज़र्व बैंक के द्वारा ही किया जाता है.
'सिक्कों से उस कालखण्ड की महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं'
प्रतीकात्मक तस्वीर
उन्होंने बताया कि प्रारंभ में सिक्के लेख विहीन होते थे किंतु, बाद में उन पर लेख लिखे जाने लगे। इससे स्थिर सिक्कों के प्रकार पता चलता है कि किस शासक, नगर, निगम, अथवा व्यापारिक श्रेणी के द्वारा जारी किए गए हैं। सिक्कों पर प्राप्त होने वाले लेखों से तत्कालीन भाषा और लिपि की जानकारी प्राप्त होती है। इससे लिपि के विकास का भी अध्ययन किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, 'विदिशा, कौशाम्बी माहिष्मती, त्रिपुरी और एरच आदि प्राचीन नगरों द्वारा सिक्के जारी किए गए थे जिससे उनके व्यापारिक महत्व का पता चलता है। इसी प्रकार कनिष्क के सिक्कों पर भी चतुर्भुजी शिव के अतिरिक्त सूर्य, चंद्रमा एवं बुद्ध के अंकन के साथ ग्रीक लिपि में ओयसो, मीरो, माओ एवं बोड्डो लेख से इन धर्मों के प्रति उसकी भावना का पता चलता है।'
गुप्त साम्राज्य के सिक्के
गुप्त साम्राज्य ने 320 से 480 ई तक राज्य किया। राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त प्रथम ने की थी उन्होंने गुप्त युग को अपना नाम दिया, जो कई शताब्दियों तक उपयोग में रहा। इस वंश में समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त जैसे महान सम्राट हुए।
गुप्त सिक्का डिजाइनों की पसंद के पीछे मुख्य उद्देश्य राजनीतिक प्रचार में से एक रहा है। राजा को हमेशा उन तरीकों से दिखाया जाता है जो एक महान शासक और वीर योद्धा राजा के रूप में अपनी स्थिति पर जोर देते हैं।
गुप्तकालीन सिक्के की शुरुआत राजवंश के तीसरे शासक चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा जारी किए गए सोने में एक उल्लेखनीय श्रृंखला के साथ हुई, जिसने एक ही प्रकार- राजा और रानी – को जारी किया, जिसमें चंद्रगुप्त और उनकी रानी कुमारदेवी के चित्रों को दर्शाया गया था। यह बहुत संभावना है कि उनके वीर पुत्र समुद्रगुप्त ने इन सिक्कों का खनन किया। हालांकि यह अत्यधिक बहस का मुद्दा है। एक सिक्का है जहाँ चंद्रगुप्त और कुमारदेवी को (बिना प्रभामंडल के) दिखाया गया है। चंद्रगुप्त अपनी रानी कुमारदेवी को एक अंगूठी (या सिन्दूर लगा रहे हैं) भेंट कर रहे हैं। ब्राह्मी लिपि में चन्द्र को राजा के बाएँ हाथ के नीचे लिखा गया है जबकि श्री-कुमरदेवी को रानी के दाहिने हाथ के पास लिखा गया है। सिक्के का उल्टा शेर पर बैठी देवी अंबिका को दर्शाता है।इस शानदार सोने के सिक्के को जारी करते समय अपने माता-पिता के प्रति उनका स्नेह प्रदर्शित किया जाता है। यह सिक्का भारतीय संख्यात्मकता में एक दुर्लभ और बहुत खास है।
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