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भारत के निर्वाचन आयोग से जुड़ी जानकारी अौर तथ्य
- नई दिल्ली,
- 10 नवंबर 2014,
- (अपडेटेड 10 नवंबर 2014, 12:57 PM IST)
भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रतिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए गया था. भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी. भारत के निर्वाचन अायोग से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं:
(a) संविधान के भाग-15 के अनुच्छेद-324 से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिया गया है.
(b) निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों से किया जाता है, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है.
(c) मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो तब तक होगा. अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु जो पहले हो तब तक रहता है.
(d) मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन (90 हजार रुपये मासिक) एवं भत्ते प्राप्त होंगे.
(e) पहले चुनाव आयोग एक सदस्यीय आयोग था, लेकिन अक्टूबर 1993 में तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया.
निर्वाचन आयोग कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां के मुख्य कार्य:
(i) चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन,
(ii) मतदाता सूचियों को तैयार करवाना,
(iii) विभिन्न राजनितिक दलों को मान्यता प्रदान करना,
(iv) राजनितिक दलों को आरक्षित चुनाव चिन्ह प्रदान करना,
(v) चुनाव करवाना,
(vi) राजनितिक दलों के लिए आचार संहिता तैयार करवाना.
निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक प्रावधान
(i) निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है अर्थात इसका निर्माण संविधान ने किया है.
(ii) मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं.
(iii) मुख्य चुनाव आयुक्त महाभियोग जैसी प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है.
(iv) मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के समान कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां ही है.
(v) नियुक्ति के पश्चात मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की सेवा शशर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है.
(vi) मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों का वेतन भरता की संचित निधि में से दिया जाता है.
कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां
मटर उत्पादन की उन्नत तकनीक
मध्यप्रदेश में मटर की खेती प्रमुखतः से सिहोर, पन्ना दमोह, सागर, सतना, रायसेन, टीकमगढ़, दतिया, ग्वालियर, मण्डला आदि जिलों में की जाती है । मटर की खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है। मटर दाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल, बेसन एवं छोले के रूप में अधिक किया जाता है । पीला मटर की खेती वर्षा आधारित क्षेत्र में अधिक लाभप्रद है । इसका क्षेत्रफल मध्यप्रदेश में 2,64,000 हे. है । इसकी उत्पादकता मध्यप्रदेश में 553 कि.ग्रा. हे. जो कि राष्ट्रीय उत्पादकता (910 कि.ग्रा. प्रति हे.) से काफी कम है । इसकी उत्पादकता बढाने के लिये उन्नत तकनीक अपनाना अति आवष्यक है ।
भूमि का चुनाव: मटर की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है परंतु अधिक उत्पादन हेतु दोमट और बलुई भूमि जिसका पी.एच.मान. 6-7.5 हो तो अधिक उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारी: खरीफ फसल की कटाई के पश्चात एक गहरी जुताई कर पाटा चलाकर उसके बाद दो जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से कर खेत को समतल और भुरभुरा तैयार कर लें । दीमक, तना मक्खी एवं लीफ माइनर की समस्या होने पर अंतिम जुताई के समय फोरेट 10जी 10-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाकर बुवाई करें ।
हरियाणा के मुख्यमंत्री जी की वेबसाइट
उपयोगकर्ता हरियाणा सरकार व मुख्यमंत्री जी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। शासन ट्रैक रिकॉर्ड, मुख्यमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री राहत कोष, मंत्रियों की परिषद से संबंधित जानकारी यहाँ उपलब्ध कराई गयी है। है। आप यहाँ राज्य के मुख्यमंत्री के भाषण भी देख सकते हैं। ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। राष्ट्रीय अवकाश और राज्य की छुट्टियों के विवरण भी उपलब्ध कराए गए हैं।
शहरी स्थानीय निकायों के राज्य निदेशालय द्वारा प्रदत्त हरियाणा में कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है। उपयोगकर्ता विवरण को हिन्दी भाषा में भी भर सकते हैं।
हरियाणा में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए आवेदन प्रपत्र
शहरी स्थानीय निकायों के राज्य निदेशालय द्वारा प्रदत्त हरियाणा में मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है। उपयोगकर्ता विवरण को हिन्दी भाषा में भी भर सकते हैं।
, मृत्यु, हरियाणा, शहरी स्थानीय निकायों का निदेशालय
शहरी स्थानीय निकायों के राज्य निदेशालय द्वारा प्रदत्त हरियाणा में विवाह प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है। उपयोगकर्ता विवरण को हिन्दी भाषा में भी भर सकते हैं।
हरियाणा में भवन निर्माण योजना का अनुमोदन/संशोधन
शहरी स्थानीय निकायों के निदेशालय द्वारा उपलब्ध कराए गए हरियाणा में भवन निर्माण की योजना का अनुमोदन / संशोधन के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है। निर्माण की योजना का अनुमोदन समय समय संशोधित नगर भवन उपनियम, 1982 एवं 2006 और 2007 में प्रकाशित नीति के मापदंडों के तहत दिया जाता है।
शहरी स्थानीय निकायों के निदेशालय द्वारा प्रदत्त हरियाणा में व्यवसाय प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है।
हरियाणा में अग्निशमन योजना का अनुमोदन/संशोधन
हरियाणा राज्य के शहरी स्थानीय निकायों के निदेशालय द्वारा प्रदत्त अग्निशमन योजना के अनुमोदन / संशोधन के लिए आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है।
हरियाणा राज्य के शहरी स्थानीय निकायों के निदेशालय द्वारा प्रदत्त फायर एनओसी के अनुमोदन/नवीकरण हेतु आवेदन करें। आवश्यक दस्तावेजों और फार्म भरने के लिए दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी दी गई है। फायर एनओसी एवं अग्निशमन योजना हरियाणा फायर सर्विस एक्ट, 2009 के तहत दिया जाता है।
Voter ID को आधार से लिंक करना कितना है जरूरी, जानिए इसके फायदे
जानिए वोटर आईडी को आधार से लिंक करने के क्या हैं फायदे (फोटो- eci.gov.in/Screenshot)
आधार कार्ड से वोटर आईडी को लिंक करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। देश के कई राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है तो वहीं कई राज्यों में यह प्रॉसेस शुरू किया जाना है। आधार कार्ड की तरह ही वोटर आईडी भी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो पहचान पत्र, एड्रेस प्रूफ कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां और अन्य जरूरी कामों में यूज किया जाता है। हालाकि आधार के आने के बाद से वोटर आईडी का यूज इन कामों के लिए बहुत ही कम किया जाने लगा है, लेकिन वोटिंग के समय इस दस्तावेज का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है।
वोटर आईडी से आधार कार्ड को लिंक करने के फायदे
बहुत से लोगों के पास एक की जगह कई वोटर आईडी कार्ड है, जिसका इस्तेमाल भी किया जा रहा है। ऐसे में आधार से वोटर आईडी को लिंक होने पर केवल एक ही वोटर आईडी कार्ड होगा और इसका मिसयूज भी कम होगा। साथ ही आधार को वोटर आईडी से लिंक करने पर डुप्लीकेसी रुकेगी।
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चुनाव में धांधली रुकेगी
चुनाव आयोग का कहना है कि इससे सबसे बड़ा फायदा होगा कि फर्जी वोट डालने वालों की संख्या खत्म हो जाएगी। पहले एक ही नाम का व्यक्ति कई वोटर आईडी से अपना वोटिंग लिस्ट में दो या तीन बार नाम दर्ज करवा लेता था और एक नाम पर कई बार वोट डालता था। लेकिन अब इस वोटिंग से धांधली रुकेगी। एक वोटर आईडी होने से सिर्फ एक बार ही वोट डाला जा सकेगा, इससे डुप्लीकेसी रुकेगी। साथ ही फर्जी वोटिंग पर लगाम लगेगा।
क्या हुआ है बड़ा बदलाव
पहला बड़ा बदलाव वोटर आईडी को आधार से लिंक करने का ही किया गया है। वहीं दूसरा बदलाव साल में चार कटऑफ डेट- 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर दिया गया है। यानी कि इस दौरान आप अपना नाम वोटर लिस्ट में जोड़ सकेंगे। वहीं पहले 1 जनवरी को ही वोटिंग लिस्ट में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया थी। वहीं महिला कर्मचारियों के पति को भी सर्विस वोटर आईडी में शामिल किया गया है, यानी पति पत्नी के नाम पर वोटिंग कर सकते हैं जबकि पहले ऐसा नहीं था।
आप अपने क्षेत्र के बीएलओ से संपर्क कर सकते हैं, वो आपका आधार कार्ड नंबर और वोटर आईडी कार्ड नंबर की जानकारी मांगेगा। इसके बाद वह वेरिफाई करके आपके आधार कार्ड को वोटर आईडी से लिंक कर देगा।
पीएमइंडिया
भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के एक गाँव में हुआ था। डॉ. सिंह ने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं” में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्ति किया गया।
1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। डॉ. सिंह ने वित्त मंत्रालय के सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष; भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष; प्रधानमंत्री के सलाहकार; विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
डॉ सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को डॉ. सिंह कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है।
डॉ. सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में से सबसे प्रमुख सम्मान है – भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण(1987); भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1956) का एडम स्मिथ पुरस्कार; कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। डॉ. सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघो द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. सिंह को कैंब्रिज एवं ऑक्सफ़ोर्ड तथा अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गई हैं।
डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने 1993 में साइप्रस में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक कैसे करें व्यापारियों का चुनाव और अन्य जानकारियां में और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है।
अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे जहाँ वे 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
डॉ. सिंह और उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर की तीन बेटियां हैं।
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