दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गयी है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के साथ-साथ अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में CAD की प्रवृत्ति होती है. लेकिन भारत के मामले में, यह घाटा देश में निवेश करने के लिए जल्दबाजी करने वाले विदेशी निवेशकों द्वारा पूरा नहीं किया गया था; इसे कैपिटल अकाउंट सरप्लस भी कहा जाता है. इस अधिशेष ने अरबों डॉलर लाए और यह सुनिश्चित किया कि रुपये (डॉलर के सापेक्ष) की मांग मजबूत बनी रहे.

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है?

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

rupee falling

कैसे रुपये के गिरने से भारत को हो रहा है नुकसान?
चलिए एक उदाहरण से समझते हैं कैसे रुपये का गिरना एक बड़ी समस्या है। मान लीजिए आपको कोई सामान आयात करने में 1 लाख डॉलर चुकाने होते हैं। इस साल की शुरुआत में रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में करीब 75 रुपये थी। यानी तब हमें इस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे। आज की तारीख में रुपया 78 रुपये से भी अधिक गिर गया है। ऐसे में हमें उसी सामान के लिए अब 75 के बजाय 78 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने होंगे। यानी 3 लाख रुपये का नुकसान। यह आंकड़ा तो सिर्फ 1 लाख डॉलर के हिसाब से निकाला है, जबकि आयात के आंकड़े लाखों-करोड़ों डॉलर के होते हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को कितना नुकसान झेलना पड़ रहा है।

एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंची, जानें- क्यों कमजोर होता जा रहा है रुपया, अभी और कितनी गिरावट बाकी?

Updated: July 19, 2022 12:44 PM IST

Dollar Vs Rupee

Rupee Vs Dollar: मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के स्तर से नीचे चला गया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया.

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रुपया विनिमय दर क्या है?

अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है. यह न केवल अमेरिकी सामान खरीदने के लिए बल्कि अन्य वस्तुओं और सेवाओं (जैसे कच्चा तेल) की पूरी मेजबानी के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय नागरिकों और कंपनियों को डॉलर की आवश्यकता होती है.

जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो भारत के बाहर से कुछ खरीदना (आयात करना) महंगा हो जाता है. इसी तर्क से, यदि कोई शेष विश्व (विशेषकर अमेरिका) को माल और सेवाओं को बेचने (निर्यात) करने की कोशिश कर रहा है, तो गिरता हुआ रुपया भारत के उत्पादों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, क्योंकि रुपये का अवमूल्य विदेशियों के लिए भारतीय उत्पादों को खरीदना सस्ता बनाता है.

डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?

सीधे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है. रुपये की तुलना में मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? डॉलर की बढ़ी हुई मांग, दो कारकों के कारण बढ़ रही है.

Dollar vs Rupee: डॉलर के आगे ‘नतमस्तक’ रुपया, इस कमजोरी से देश पर क्या असर पड़ेगा, कौन रहेंगे फायदे में?

डॉलर के मुकाबले रुपया

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

विस्तार

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।

शेयर बाजार

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान

भारतीय मुद्रा

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अपूर्वा राय

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2022,
  • (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)

एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,

भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.

आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.

क्या होता है एक्सचेंज रेट

दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.

हाइलाइट्स

अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.

नई दिल्‍ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्‍यवस्‍था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्‍यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्‍सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.

आईआईएफएल सिक्‍योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्‍ता का कहना है कि ज्‍यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्‍हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्‍ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्‍यादा उत्‍पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि ज्‍यादातर ग्‍लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्‍पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्‍ता हो जाता है और ग्‍लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.

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