वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र
Systematic Analysis of Moving Target Defenses for Branch Prediction Attacks
Date 6th Dec 2022
Venue Meeting Room 1 (SSB-233)
Details
While branch predictors play a crucial role in high-performance processors, they are easy targets for micro-architectural attacks.
A promising direction to counter these attacks is to randomize the branch predictor's state periodically to create moving targets for the attacker. While such approaches have been successfully applied to mitigate similar attacks in cache memories, applying them in branch predictors offers a unique set of challenges. Unlike cache memories, branch predictors differ widely in architecture. Their proximity to the processor's pipeline requires the countermeasures to be highly efficient to minimize overheads.
In this paper, we present a systematic analysis of the moving target countermeasure on branch predictors.
To capture different branch predictor architectures, we propose a generic branch predictor model. We use the model to formally define various attack strategies on branch predictors and then systematically evaluate various randomization techniques. For evaluation, we instantiate five वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र different branch predictors from the generic predictor model and adapt the attack models and randomization techniques for each predictor. We वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र compute the ideal randomization interval, which we show intricately depends on the branch predictor architecture. We study the performance and area overheads by extending the branch predictor in an OpenRISC processor, enhanced with the randomization countermeasure.
वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र
Systematic Analysis of Moving Target Defenses for Branch Prediction Attacks
Date 6th Dec 2022
Venue Meeting Room 1 (SSB-233)
Details
While branch predictors play a crucial role in high-performance processors, they are easy targets for micro-architectural attacks.
A promising direction to counter these attacks is to randomize the branch predictor's state periodically to create वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र moving targets for the attacker. While such approaches have been successfully applied to mitigate similar attacks in cache memories, applying them in branch predictors offers a unique set of challenges. Unlike cache memories, branch predictors differ widely in architecture. Their proximity to the processor's pipeline requires the countermeasures to be highly efficient to minimize overheads.
In this paper, we present a systematic analysis of the moving target countermeasure on branch predictors.
To capture different branch predictor architectures, we propose a generic branch predictor model. We use the model to formally define various attack strategies on branch predictors and then systematically evaluate various randomization techniques. For evaluation, we instantiate five different branch predictors from the generic predictor model and adapt the attack models and randomization techniques for each predictor. We compute the ideal randomization interval, which we show intricately depends on the branch predictor architecture. We study the performance and area overheads by extending the branch predictor in an OpenRISC processor, enhanced with the randomization countermeasure.
केवल 31 फीसदी महिलाओं के पास हैं मोबाइल फोन, भारत में डिजिटल डिवाइड पर ऑक्सफैम रिपोर्ट में हुआ खुलासा
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाओं के पास मोबाइल फोन रखने की संभावना 15 प्रतिशत कम है और मोबाइल इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की संभावना 33 प्रतिशत कम है।
केवल 31 फीसदी महिलाओं के पास हैं मोबाइल फोन, भारत में डिजिटल डिवाइड पर ऑक्सफैम रिपोर्ट में हुआ खुलासा
Highlights ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 इंटरनेट ग्राहकों की संख्या 34 से कम है। शहरी केंद्रों में ये 101 से अधिक है। शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय समावेशन के सार्वभौमिक प्रावधान में संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना अत्यावश्यक है। रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, देश में प्रति 100 लोगों पर केवल 57.29 इंटरनेट ग्राहक हैं और शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ये संख्या काफी कम है।
नई दिल्ली: ऑक्सफैम ने सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा कि 60 प्रतिशत से अधिक पुरुषों की तुलना में भारत में 32 प्रतिशत से कम महिलाओं ने मोबाइल फोन का उपयोग किया है। 'भारत असमानता रिपोर्ट 2022: डिजिटल डिवाइड' पुरुषों और महिलाओं के बीच डिजिटल विभाजन को गहरा करने में लैंगिक असमानता की भूमिका को रेखांकित करने के लिए 2021 के अंत तक के आंकड़ों पर विचार करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के पास आमतौर पर ऐसे हैंडसेट होते हैं जिनकी कीमत कम होती है और वे पुरुषों की तरह परिष्कृत नहीं होते हैं, और डिजिटल सेवाओं का उनका उपयोग आमतौर पर सीमित फोन कॉल और टेक्स्ट संदेश होता है। रिपोर्ट में कहा गया, "महिलाएं कम बार और कम तीव्रता से डिजिटल सेवाओं का उपयोग करती हैं, और वे कम कारणों से इंटरनेट का उपयोग कम बार करती हैं।"
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के आंकड़ों का हवाला देते हुए ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया के आधे लिंग वाले डिजिटल डिवाइड के लिए जिम्मेदार है, ये देखते हुए कि सभी इंटरनेट यूजर्स में से केवल एक तिहाई महिलाएं हैं। रिपोर्ट में कहा गया, "पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाओं के मोबाइल फोन रखने की संभावना 15 प्रतिशत कम है और मोबाइल इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की संभावना 33 प्रतिशत कम है।"
ऑक्सफैम ने कहा कि लैंगिक सामाजिक बेंचमार्क इस परिदृश्य में पुरुषों और महिलाओं के लिए 'उपयुक्त' क्या है, ये तय करते हैं, और इससे पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए डिजिटल सेवाओं का उपयोग और आत्मसात करने का स्तर अपेक्षाकृत कम हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया, "एक डिजिटल डिवाइस का मालिक होना और उसका उपयोग करना पुरुष द्वारा तय किया गया एक घरेलू निर्णय है।"
इसके अलावा रिपोर्ट सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) और नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) के डेटा का विश्लेषण करने के बाद क्षेत्र, आय, जाति और शिक्षा के आधार पर डिजिटल असमानता पर भी प्रकाश डालती है। रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, देश में प्रति 100 लोगों पर केवल 57.29 इंटरनेट ग्राहक हैं और शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ये संख्या काफी कम है।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 इंटरनेट ग्राहकों की संख्या 34 से कम है। शहरी केंद्रों में ये 101 से अधिक है। ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने रिपोर्ट में कहा, "वास्तव में समान दुनिया की कल्पना करने के लिए डिजिटल परिवर्तन को सामाजिक आर्थिक वास्तविकताओं की संरचनात्मक असमानताओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय समावेशन के सार्वभौमिक प्रावधान में संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना अत्यावश्यक है। इसके बाद डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन होगा।"
वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र
क्या वित्तीय पहुंच से भारतीय अनौपचारिक क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकता है?
विकासशील देशों में साख बाजारों की वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र व्यापक विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई साख संबंधी बाधाओं को व्यापक रूप से उद्यमिता के लिए एक प्रमुख बाधा के रूप में माना गया है। यह लेख वर्ष 2010-11 और 2015-16 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए दर्शाता है कि भारत के जिन जिलों में बैंकों की संख्या कम है वहां वित्त की पहुंच बढ़ाने के लिए इस अवधि के दौरान भारत सरकार द्वारा की गई नीतिगत कार्रवाइयां एक महत्वपूर्ण आयाम में सफल हुईं हैं- इसने स्वरोजगार करने वाले कई लोगों को बाहरी श्रमिकों को काम पर रखने हेतु नियोक्ता के वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र रूप में सक्षम बनाते हुए भारत के अनौपचारिक क्षेत्र में उद्यमिता के विकास में योगदान दिया है।
विकासशील देशों की प्रमुख विशेषताओं में से एक- बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का होना है, जिसके अंतर्गत गैर-उद्यमी फर्मों का एक बड़ा समूह आता है (डी रेयर और रूबॉड 2013)। ये फर्में आम तौर पर घरेलू इकाइयाँ हैं, और ये उत्तरजीवितावादी स्वरूप की हैं जिनके विकास की संभावनाएं सीमित हैं (ग्रिम एवं अन्य 2012)। इनमें से कई घरेलू इकाइयाँ महिलाओं द्वारा चलाई जाती हैं, जिन्हें उद्यमशीलता में पुरुषों की तुलना में अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है (इससे संबंधित शोध पर समीक्षा के लिए, जेनिंग्स और ब्रश 2013 देखें)। इससे संबंधित अधिकांश साहित्य ने यह उजागर करने की कोशिश की है कि क्यों इनमें से गिनी-चुनी कंपनियां ही घरेलू इकाई से आगे का विस्तार पाती हैं (जिसके परिणामस्वरूप अधिक उत्पादक बनती हैं), और हम अनौपचारिक क्षेत्र की उद्यमिता में लैंगिक अंतर क्यों पाते हैं (देखें चेन 2012 और फील्ड्स 2019)। विकासशील देशों में साख बाजारों की व्यापक विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई साख संबंधी बाधाओं को व्यापक रूप से उद्यमिता के लिए एक प्रमुख बाधा के रूप में माना गया है (केर और नंदा 2011)। तथापि, सामान्य रूप से उद्यमिता और विशेष रूप से महिला उद्यमिता का निर्धारण करने में वित्त की भूमिका पर बहुत कम व्यवस्थित साक्ष्य उपलब्ध हैं।
हाल के एक अध्ययन (गैंग एवं अन्य 2022) में, हम इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों के परिवार और घरेलू इकाइयों से परे विस्तार में वित्तीय पहुंच की भूमिका की जांच करते हैं। हम दो प्रश्न पूछते हैं: (i) क्या बढे हुए वित्तीय समावेशन के चलते अनौपचारिक आर्थिक गतिविधि अधिक उद्यमशील बन जाती है?; (वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र ii) क्या वित्तपोषण के नए विकल्पों तक पहुंच अनौपचारिक आर्थिक गतिविधि के लैंगिक समीकरण को बदल देती है वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र और यदि हां, तो किन तरीकों से और किन दिशाओं में? हमारे अध्ययन का संदर्भ 2010 के दशक के दौरान का भारत है, यह एक ऐसी अवधि है, जिसके दौरान बैंकिंग नीतियों ने महिलाओं और बैंकिंग सुविधाओं से वंचित लोगों तक बैंकिंग पहुंच का बहुत अधिक विस्तार किया।
हम अनौपचारिक क्षेत्र को दो फर्म प्रकारों- घरेलु फर्मों और उद्यमशील फर्मों के रूप में देखते हैं। इनमें फर्क यह है कि उद्यमी फर्में बाहर के गैर-पारिवारिक श्रमिकों यानी किराए के श्रमिकों को तैनात करती हैं। हम उद्यमी अनौपचारिक फर्मों के स्वामित्व पर बैंकिंग पहुंच के कारण वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र आंशिक रूप से पड़े वित्तीय समावेशन के प्रभाव और इन प्रभावों में लैंगिक अंतर पर ध्यान केंद्रित करते हुए इसके परिणामों की जांच करते हैं। हम भारत के अनौपचारिक क्षेत्र को विनिर्माण फर्मों और अनिगमित गैर-कृषि उद्यमों-सहित देखते हैं। इस क्षेत्र में लगभग 75% विनिर्माण रोजगार और 17% विनिर्माण उत्पादन हैं, और इनमें से लगभग 86% फर्म परिवार के स्वामित्व वाली हैं (राज और सेन 2016)। हम भारत के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र एनएसएसओ) द्वारा वर्ष 2010-11 (67वें दौर) और वर्ष 2015-16 (73वें दौर) में एकत्र किए गए राष्ट्रव्यापी दोहराए गए क्रॉस-अनुभागीय डेटा का उपयोग करते हैं।
भारत में वित्तीय पहुंच
भारत का केंद्रीय बैंक- भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई), बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से विशिष्ट नीतियों का पालन करता है। आरबीआई ने वर्ष 2005 में, भारत के ऐसे जिलों (राज्य उपखंडों) को कम बैंक वाले जिलों के रूप में वर्गीकृत करना शुरू किया, जिनमें प्रति बैंक शाखा की जनसंख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है। विभिन्न नीतियों ने इन जिलों 1 में बैंक शाखा के विस्तार को प्रोत्साहित किया। वर्ष 2010-11 और 2015-16 के बीच की अवधि भारत में बैंकिंग उपलब्धता के तेजी से विस्तार वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र में से एक थी, विशेष रूप से जहाँ बैंक नहीं हैं, कम बैंक है और महिलाओं के लिए। यह भारत में कम बैंक वाले जिलों की संख्या में वर्ष 2010-11 के 355 से वर्ष 2015-16 में 344 तक आई कमी से स्पष्ट है (तालिका 1 देखें)। वर्ष 2010-11 में प्रति बैंक शाखा कवर की गई जनसंख्या 13,027 थी, जो वर्ष 2015-16 में काफी कम होकर 8,683 हो गई। दो मुख्य कार्यक्रम, 19 वित्तीय विश्लेषण का क्षेत्र नवंबर 2013 को शुरू हुए भारतीय महिला बैंक (इंडियन वुमंस बैंक) 2 और 28 अगस्त 2014 को शुरू की गई प्रधान मंत्री जन धन योजना 3 ने देश में वित्तीय पहुंच के विस्तार में योगदान दिया है। वर्ष 2011 से 2017 तक, बैंक खाते वाले वयस्कों की हिस्सेदारी दोगुनी से अधिक होकर 80% हो गई; और महिलाओं के सन्दर्भ में, वर्ष 2014 और 2017 के दौरान खाते के स्वामित्व में 30% से अधिक की वृद्धि हुई।
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