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पूंजी लागत क्या है? परिभाषा, महत्व
Punji lagat ka arth paribhasha mahatva;साधारण रूप से विनियोक्ता की दृष्टि से लागत उस त्याग का पुरस्कार है जिसकी वह वर्तमान उपभोग को स्थापित करके भविष्य में विनियोग के बदले प्राप्त करने की कामना करता है। दूसरी और पूंजी का उपयोग करने वाली फर्म की दृष्टि से पूंजी का उपयोग करने के बदले उसके द्वारा विनियोक्ता को दिया गया मूल्य ही पूंजी की लागत है।
पूंजी की लागत वह न्युनतम दर है जिसको पूंजी पर अर्जित करना प्रबन्धकों के लिए आवश्यक होता है क्योकि इससे कम दर पर अर्जन व्यवसाय के लिए हानिप्रद होता है।
पूंजी की लागत की परिभाषा (Punji lagat ki paribhasha)
मिल्टन एच. स्पेन्सर के शब्दों में,'' पूंजी लागत प्रतिफल की वह न्यूनतम पूंजी प्रबंधन की विधि दर है जो एक विनियेाग योजना के लिए आवश्यक है।''
हन्ट, विलियन एंव डोबाल्डसन के शब्दो में,'' पूंजी लागत को उस दर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जो देय धन देय होने पर लागत व्यय की पूर्ति हेतु उचित अर्जन है।''
ऊपर दी गयी दी परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पूंजी लागत से तात्पर्य संस्था द्वारा पूंजी के प्रयोग के बदले में दिया गया प्रतिफल होता है जिसे प्राप्त हो उपयोग की गयी पूंजी पर प्रतिशत के रूप मे व्यय करते है।
पूंजी की लागत का महत्व (punji lagat ka mahatva)
एक व्यवसायिक संस्था की पूंजी पूंजी प्रबंधन की विधि की लागत पूंजी ढांचा से प्रभावित होती है। पूंजी की लागत का उपयोग विभिन्न स्त्रोतों के तुलनात्मक अध्ययन से किया जा सकता है ताकि संस्था की पूंजी की औसत लागत को न्यूनतम रखकर उसके बाजार मूल्य को अधिकतम रखा जा सके।
पूंजी बजटिंग के क्षेत्र में पूंजी की पूंजी प्रबंधन की विधि लागत का प्रयोग निर्णयन में एक मापदण्ड के रूप में सहायक सिद्ध हो रहा है। किसी व्यवसायिक संस्था की पूंजी की औसत लागत प्रत्याय की उस न्यूनतम दर का परिचायक है जिससे कम पर पूंजी विनियोग के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नही किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिए बट्टा दर विधि के अन्तर्गत परियोजना के भावी नगद प्रवाहों को इसी दर के आधार पर बट्टा किया जाता है। इसी प्रकार आन्तरिक प्रत्याय दर विधि के अन्तगर्त जिस दर से भावी नगद प्रवाहो का मूल्य परियोजना की वर्तमान लागत के बराबर होता है यदि वह दर पूंजी की लागत दर के बराबर अथवा अधिक होती है तब ही उस प्रस्ताव को स्वीकृत किया जाता है अन्यथा नही। अत: यह कहा जा सकता है कि पूंजी की लागत वह न्यूनतम दर है जो निवेश पर अवश्य अर्जित की जानी चाहिए।
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कार्यशील पूंजी को प्रभावित करने वाले घटक कौन कौन से हैं?
कार्यशील पूंजी की मात्रा के निर्धारक पूंजी प्रबंधन की विधि घटक या तत्व (karyasheel punji ke ghatat)
- व्यवसाय की प्रकृति
- उत्पादन प्रक्रिया मे लगने वाला समय
- माल की आवृत्ति
- क्रय-विक्रय की शर्तें
- व्यवसाय का आकार
- लाभांश नीतियाँ
- बैंकिंग सम्बन्ध
- खरीद की शर्तें एवं रीतियां
पूंजी कितने प्रकार की है?
पूंजी के प्रकार (punji ke prakar)
- अचल एवं चल पूंजी वह पूंजी को स्थाई होती है वह अचल पूंजी है एवं जिसका उत्पादन मे उपयोग संभव होता है।
- उत्पत्ति एवं उपभोग पूंजी
- एक उपयोगी एवं बहु उपयोगी पूंजी
- व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक पूंजी
- भौतिक एवं वैयक्तिक पूंजी
- पारिश्रमिक एवं सहायक पूंजी
- देशी एवं विदेशी पूंजी
कार्यशील पूंजी के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
विभिन्न प्रकार की कार्यशील पूंजी में निम्नलिखित शामिल हैं.
- स्थायी कार्यशील पूंजी
- सकल और निवल कार्यशील पूंजी
- अस्थायी कार्यशील पूंजी
- नकारात्मक कार्यशील पूंजी
- आरक्षित कार्यशील पूंजी
- नियमित कार्यशील पूंजी
- मौसमी कार्यशील पूंजी
- विशेष कार्यशील पूंजी
कार्यशील पूंजी प्रबंध क्या है?
इसे सुनेंरोकेंकार्यशील पूंजी प्रबंधन कंपनी के प्रभावी ऑपरेशन के लिए बिज़नेस की वर्तमान एसेट और लायबिलिटी का सर्वश्रेष्ठ उपयोग सुनिश्चित करता है. कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करने का मुख्य उद्देश्य किसी कंपनी की पर्याप्त नकद प्रवाह बनाए रखने और अल्पकालिक बिज़नेस लक्ष्यों को पूरा करने के लिए देयताओं की निगरानी करना है.
कार्यशील पूंजी क्या है in Hindi?
इसे सुनेंरोकेंकार्यशील पूंजी क्या होती है कार्यशील पूंजी दिन-प्रतिदिन के खर्चों के प्रबंधन के लिए बिज़नेस के लिक्विडिटी स्तर को इंगित करती है और इन्वेंटरी, कैश, देय अकाउंट, प्राप्य अकाउंट और शॉर्ट-टर्म डेब्ट को कवर करती है. यह किसी संगठन की अल्पकालिक फाइनेंशियल स्थिति का संकेतक है और यह इसकी समग्र दक्षता का एक मापन भी है.पूंजी प्रबंधन की विधि
पूंजी की उपयोग लागत के दो घटक क्या है वर्णन कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंपूंजी की लागत – ऋण की लागत, वरीयता शेयर पूंजी, इक्विटी शेयर पूंजी और सेवानिवृत्त आय वित्त के इन स्रोतों को पूंजी की लागत के घटक कहा जाता है।
स्थायी पूंजी क्या है?
इसे सुनेंरोकेंस्थायी पूंजी से आशय उस सम्पत्ति से है, जो कि व्यापार में विक्रय के उद्देश्य से नहीं लगायी जाती है और न ही उसे व्यापार के कार्यकलापों को बदलते हुए बेचा जा सकता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं, कि जो पूँजी स्थायी सम्पत्ति पर विनियोग करने के लिए ली जाती है उसे स्थायी पूँजी कहते हैं।
स्थायी पूंजी प्रबंधन की विधि पूंजी से आपका क्या अभिप्राय है?
इसे सुनेंरोकेंजब बिजनेस को शुरु किया जाता है तो एक फिक्स अमाउंट को तैयार किया जाता है। उस फिक्स अमाउंट को ही स्थाई पूंजी कहा जाता है। इस स्थाई पूंजी से बिजनेस शुरु करने में होने वाले सभी खर्च का पूंजी प्रबंधन की विधि पूंजी प्रबंधन की विधि वहन किया जाता है। बिजनेस के शुरुआत में जितना भी खर्च होता है।
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